स्वतंत्र बोल
रायपुर 09 जनवरी 2025. रामचंद्र स्वामी जैतूसाव मठ की जमीनों में बड़ा खेला हुआ है। भूमाफियाओ और राजस्व अधिकारियो के गठजोड़ से मठ, मंदिरो की जमीने नहीं बची। बीते दो सालो में जैतूसाव मठ की जमीनों की बिक्री, और नामांतरण में बड़ा खेल हुआ है। तत्कालीन तहसीलदारो ने निजी हितो को देखते हुए नियमो विपरीत आदेश पारित किया है। ऐसा ही एक मामला तहसीलदार अजय चंद्रवंशी का सामने आया है जिसमे उन्होंने आपत्ति को दरकिनार कर 40 साल पुराने प्रकरण में आदेश पारित कर दिया।
जैतूसाव मठ की दतरेंगा स्थित साढ़े 17 एकड जमीन को साल 1972 में तत्कालीन महंत ने किसान गणेश राम साहू को बेचा था, पर 50 सालो तक उसका नामांतरण नहीं हुआ था। साल 2024 में किसान ने जमीन के नामांतरण करने तहसील कार्यालय में आवेदन किया। जिस पर मंदिर ट्रस्ट ने आपत्ति की पर उसे तत्कालीन तहसीलदार रहे अजय चंद्रवंशी ने ख़ारिज कर दिया। बताते है की इस जमीन में राजधानी के बड़े बिल्डर की दिलचस्पी थी।
ऐसा हुआ खेला-
जैतूसाव मठ के तत्कालीन महंत द्वारा साल 1972 में दतरेंगा की साढ़े 17 एकड जमीन बेचा था। साल 2024 में किसान द्वारा नामांतरण के लिए आवेदन करने पर मठ प्रबंधन ने आपत्ति की। किसान गणेशराम साहू को तहसील और एसडीएम दोनों ही कोर्ट से निराशा मिली तो राजस्व बोर्ड में अपील किया, जहा बोर्ड ने तहसीलदार को गुण दोषो के आधार पर निर्णय करने आदेशित किया था, और यही पूरा खेल हो गया। जिस आवेदन को तहसीलदार अजय चंद्रवंशी ने पहले ख़ारिज किया था, उसे बाद में एक्सेप्ट करते हुए किसान के पक्ष में आदेशित कर नामांतरण कर दिया।
फर्जी विक्रय विलेख, दस्तावेजों में हेर-फेर के आरोप-
मंदिर प्रबंधन द्वारा की गई शिकायत अनुसार जिस जमीन की रजिस्ट्री कथित तौर पर साल 1972 में हुआ था, उसे तत्कालीन एडीएम आरके तिवारी ने न्यास की बैठक में सर्वसम्मती से साल 1981 में रजिस्ट्री करने प्रस्तावित किया था। वही तत्कालीन कलेक्टर और पंजीयक सार्वजनिक न्यास वीएस त्रिपाठी द्वारा जारी किये गए आदेशों में छेड़छाड़ किया गया था। वही मंदिर समिति ने साल 1972 में कथित तौर पर हुए रजिस्ट्री को निरस्त करने कोर्ट में याचिका दाखिल किया था, मंदिर प्रबंधन के पुष्ट तथ्यों को नजर अंदाज करते हुए तत्कालीन तहसीलदार अजय चंद्रवंशी ने अपने तबादले के बाद भी नामांतरण किसान के नाम पर कर दिया।
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