महाकुंभ के बारे में कुछ ज़रूरी बातें, जो हो सकती हैं मददगार

महाकुंभ

प्रयागराज में महाकुंभ 2025 की तैयारियां ज़ोरों पर हैं.

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प्रयागराज 09 जनवरी 2025: उत्तर प्रदेश सरकार ने महाकुंभ मेले के आयोजन के लिए डिजिटल तैयारियां भी की हैं ताकि लाखों श्रद्धालुओं के लिए महाकुंभ मेले के अनुभव को यादगार बनाया जाए सके.

इस साल महाकुंभ मेले में क़रीब 45 करोड़ लोगों के आने का अनुमान लगाया गया है. इस विशाल मेले को देखने के लिए दुनिया के कई हिस्सों से लोग आते हैं.

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क्या है कुंभ?

 कुंभ मेला बहुसंख्यक हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक है. ऐसी मान्यता है कि कुंभ में संगम तट पर स्नान करने से मोक्ष मिलता है.

हर तीन साल में हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज और नासिक में एक बार आयोज‍ित होने वाले मेले को कुंभ कहा जाता हैं.

कुंभ मेले तीन प्रकार के होते हैं- महाकुंभ, पूर्णकुंभ और अर्धकुंभ.

महाकुंभ को केवल प्रयागराज में ही आयोजित में किया जाता है. प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का पवित्र संगम होने के कारण इसका अलग धार्मिक महत्व है.

अर्ध कुंभ भी कुंभ मेला का ही एक भाग है जो हर छह साल में प्रयागराज और हरिद्वार में आयोजित किया जाता है.

महाकुंभ का आयोजन 13 जनवरी से 26 फ़रवरी के बीच उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में होगा.

इससे पहले साल 2019 में अर्धकुंभ और साल 2013 में पूर्णकुंभ का आयोजन प्रयागराज में किया गया था.

कुंभ मेले के पीछे हिंदू धर्म की पौराणिक कहानी है. जिसके मुताबिक़ समुद्र मंथन के दौरान जब राक्षसों और देवताओं के बीच अमृत को लेकर संघर्ष हुआ था. इस संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में गिरी थीं. यही कारण है कि कुंभ का आयोजन सिर्फ़ इन चार स्थानों पर किया जाता है.

पौराणिक मान्यता यह भी है कि अमृत से भरे कलश को स्वर्ग पहुंचने में 12 दिन लगे थे और देवताओं का एक दिन पृथ्वी के एक साल के बराबर होता है, यही वजह है कि पूर्ण कुंभ को हर 12 साल में आयोजित किया जाता है.

महाकुंभ को प्रयागराज के संगम तट पर आयोजित किया जाता है क्योंकि यहां पर गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों का संगम होता है. हिंदू धर्म में संगम का यह स्थान पवित्र माना जाता है.

शाही स्नान क्या है और इसका महत्व

 कुंभ में शाही स्नान का ख़ास महत्व है. शाही स्नान को ‘राजयोग स्नान’ भी कहा जाता है, महाकुंभ मेले का मुख्य आकर्षण और ये सबसे प्रमुख धार्मिक अनुष्ठान हैं.इस साल महाकुंभ में तीन शाही स्नानों का आयोजन किया जाएगा.पहला शाही स्नान 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन आयोजित किया जाएगा. वहीं दूसरा शाही स्नान 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के मौके पर और तीसरा शाही स्नान 3 फ़रवरी को बसंत पंचमी के दिन आयोजित होगा.

इन दिनों के अलावा भी कुंभ में हर दिन स्नान होता है.

माना जाता है कि शाही स्नान की शुरुआत 14वीं से 16वीं सदी के बीच हुई थी. तब मुग़ल शासक भारत में अपनी जड़ें जमाने लग गए थे. दोनों का धर्म अलग-अलग होने की वजह से साधुओं का इन शासकों के साथ संघर्ष की स्थिति बनने लगी थी.

ऐसे ही किसी संघर्ष के बाद कभी दोनों धर्मों के लोगों की बैठक हुई और यह तय हुआ कि दोनों धर्म के लोग एक दूसरे के धार्मिक आयोजन में दख़ल नहीं देंगे. हालांकि यह कब हुआ, इसको लेकर ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है.

बहरहाल इसके बाद साधुओं को सम्मान देने के लिए कुंभ के दौरान खास महसूस कराने के लिए हाथी, घोड़ों पर बैठकर उनकी पेशवाई निकाली गई.स्नान के दौरान साधुओं का ठाठ-बाट राजाओं जैसा होता था, इस वजह से उनके स्नान को शाही स्नान कहा गया. तभी से शाही स्नान की प्रकिया चल रही है.शाही स्नान में सबसे पहले नागा साधु (निर्वस्त्र साधु) स्नान करते हैं. उनके बाद महामंडलेश्वर और अन्य साधु स्नान करते हैं. श्रद्धालु शाही स्नान के बाद पवित्र नदी में स्नान करते हैं.

डिजिटल महाकुंभ

 इस महाकुंभ में लोगों के भाग लेने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने तमाम सुविधाओं और सेवाओं को डिजिटल टेक्नोलॉजी से जोड़ा है. इस महाकुंभ को डिजिटल महाकुंभ भी कहा जा रहा है.यूपी सरकार ने महाकुंभ मेला ऐप, एआई चैटबॉट, क्यूआर कोड से जानकारी और डिजिटल खोया-पाया केंद्र जैसी डिजिटल सेवाओं को शुरु की है.

महाकुंभ मेला ऐप 11 से अधिक भाषाओं में उपलब्ध है. यह ऐप यात्रा की योजना, टेंट सिटी का विवरण, गूगल नेविगेशन, कार्यक्रमों के रियल टाइम अपडेट, पर्यटक गाइड का विवरण, व्यापारिक और आपातकालीन सेवाएं मुहैया कराएगा. इसके अलावा ये ऐप लाइव अपडेट्स और स्थानीय सेवाओं से जोड़ने में सहायक है.

 इसके अलावा महाकुंभ में 10 डिजिटल खोया-पाया केंद्र बनाए गए हैं. ये केंद्र महाकुंभ में परिवार से बिछड़ने वाले लोगों को खोजने में सहायता करेंगे.इन केंद्रों के ज़रिए महाकुंभ में परिवार से बिछड़ने वालों से जुड़ी जानकारी वहां पर मौजूद सभी एलसीडी पर दिखाई जाएगी. इसके अलावा सभी सोशल मीडिया पेज पर खोए हुए लोगों की फोटो और वीडियो संदेश पोस्ट किए जाएंगे.

वहीं श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए चार प्रकार के

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लगाए जा रहे हैं. जिसमें हरे रंग का क्यूआर कोड प्रशासनिक सेवाओं के लिए है.इस क्यूआर कोड को स्कैन करके 28 पेजों का पीडीएफ खुलेगा, जिसमें मंडलायुक्त से लेकर प्रशासनिक अफसरों के नंबर एवं पुलिस स्टेशन के नंबर उपलब्ध होंगे.महाकुंभ के डिजिटलीकरण के तहत मेला क्षेत्र में मैपिंग के लिए गूगल और यूपी प्रशासन के बीच समझौता हुआ है, जिससे गूगल मैप के जरिए कुंभ में आने वाले लोग मंदिर, संगम तट और अन्य जगहों पर आसानी से जा सकेंगे.

कुंभ क्षेत्र में 328 एआई-सक्षम कैमरे लगाए गए हैं, जिनकी मदद से पूरे कुंभ क्षेत्र की निगरानी की जाएगी.

प्रशासन ने बताया है कि कुंभ में आने वाले लोगों के ठहरने के लिए हमेशा की तरह एक टेंट सिटी भी बनाई जा रही है.

महाकुंभ नगर के एसएसपी राजेश द्विवेदी का कहना है कि कुंभ की निगरानी के लिए एआई तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा.

बिना अनुमति ड्रोन उड़ाने वालों पर कार्रवाई के लिए पुलिस एंटी-ड्रोन तकनीक का उपयोग कर रही है, जिससे ऐसे ड्रोन्स को गिराया जा सकेगा.

कैसे पहुंच सकते हैं प्रयागराज

महाकुंभ का आयोजन उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर में किया जा रहा है. प्रयागराज में रेल, बस और फ्लाइट के ज़रिए पहुंचा जा सकता है.

इस दौरान कुल 13,000 ट्रेनों का संचालन किया जाएगा. महाकुंभ के लिए भारतीय रेलवे ने मेगा रेलवे प्रोजेक्ट के तहत 4500 करोड़ रुपए खर्च करने का एलान किया है.

महाकुंभ के लिए रेलवे ने तीन हज़ार स्पेशल ट्रेन चलाने की घोषणा की है और मौनी अमावस्या के दिन अलग से 300 ट्रेनें चलाई जाएंगी.

प्रयागराज के रेलवे स्टेशन पर क्यूआर कोड की जैकेट पहने हुए रेलवे के कर्मचारी तैनात किए गए है. रेलवे कर्मचारियों की जैकेट में लगे क्यूआर कोड को अपने मोबाइल से स्कैन करके लोग यूटीएस ऐप डाउनलोड करके डिजिटल टिकट बुक कर सकते हैं.

यूपी रोडवेज भी लगभग 7000 बसों की सुविधा उपलब्ध कराने जा रहा है.

महाकुंभ मेला सिटी से सबसे पास प्रयागराज बमरौली एयरपोर्ट है जो कि महाकुंभ मेला सिटी से 22 किलोमीटर की दूरी पर है.

एयरलाइंस एलायंस एयर दिल्ली के अलावा भुवनेश्वर, गुवाहाटी, चंडीगढ़, जयपुर और देहरादून से प्रयागराज के लिए फ्लाइट चलाएगी.

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