राहुल गोस्वामी @स्वतंत्र बोल
महात्मा गाँधी वानिकी एवं उद्यानिकी विश्वविद्यालय इन दिनों चर्चा में है। चर्चा में रहने का कारण कोई विशेष उपलब्धि ना होकर शिक्षकों के चयन में फर्जीवाड़ा है, जिसे कथित तौर विश्वविद्यालय प्रबंधन ने अंजाम दिया है। विश्वविद्यालय अपने अस्तित्व में आने के बाद से अब तक केवल गलत कार्यो सुर्ख़ियों की बटोरी है। साल 2019 में जब इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय से अलग होकर नया विश्वविद्यालय बनाया गया तो पहला ही विवाद कुलपति नियुक्ति को लेकर हुआ, जो अब बढ़ाते क्रम पर है। शुरुआत में तत्कालीन राज्यपाल ने बिना किसी प्रक्रिया अपनाये गैर प्रोफ़ेसर को कुलपति बना दिया, उन्होंने राज्य सरकार कुआ अनुशंसा और यूजीसी के नियमो की परवाह भी नहीं की,, दर्जनों उम्मीदवारों में ऐसे उम्मीदवार को कुलपति चयनित किया जिस पर पूर्व में भी भ्रष्टाचार और अन्य गंभीर आरोप लगे है। जिस प्रोफेसर ने अपने कुलपति बनने की तमन्ना से पूरा योजना बनाया अब वो बाहर बैठे तमाशा देख रहे है। तत्कालीन सरकार के अनुशंसा की अनदेखी कर डॉ नोयडा निवासी डॉ रामशंकर कुरील को पहला कुलपति बनाया गया, तो सरकार ने दो वर्षो तक अधिसूचना जारी नहीं की। तक तक कुलपति का निवास और विश्वविद्यालय का सञ्चालन इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय के गेस्ट हाउस के दो कमरे में संचालित होता रहा। तमाम तरह के आयाम व्यायाम के बाद चुनावी वर्ष में अधिसूचना जारी हुई तो कुलपति के अच्छे दिन आये। विश्वविद्यालय को कैम्प ऑफिस मिला तो कुलपति को नई गाडी..
चुनावी वर्ष में पूर्व सीएम ने विश्वविद्यालय को सवारने भरपूर फंड जारी किया। 102 करोड़ का बिल्डिंग भवन का टेंडर सहित सैकड़ो पदों के भर्ती की अनुमति। सब कुछ सरकार के निर्देशों के अनुसार हो रहा था,, भर्ती प्रक्रिया भी। चुनाव में नतीजे बदले तो स्थिति भी बदल गई पर आदते नहीं बदली। डॉ. रामशंकर कुरील यहाँ भी इतिहास दोहरा रहे है, पूर्व में झारखण्ड के बिरसा मुंडा कृषि विश्वविद्यलय में छह महीने तक प्रभारी कुलपति रहे। छह महीने में वहाँ 47 करोड़ का खेल हो गया। उससे पहले इंदौर और फैज़ाबाद में रहे वहा भी कारनामे चर्चित रहे। असिस्टेंट प्रोफ़ेसर भर्ती में खुले तौर पर नियमो का उल्लंघन किया गया है। अपनों और करीबियों को उपकृत किया गया, शिकायतों और आरोपों को सही माने तो एक-एक पद के लिए 30-30 लाख रुपये लिए गए, लेन देन सिस्टमेटिक तरीके से हुआ.. हालाँकि इसे कोई भी स्पष्ट रूप से स्वीकार नहीं रहा। ऐसे में कोई आखिर कुलपति बनने कोई व्यक्ति डेढ़ से दो करोड़ क्यों ना खर्च करे।
सरकार ने सख्ती दिखाते हुए जाँच के निर्देश दिए है तो कुलाधिपति एवं राज्यपाल ने तीन कुलपतियों की समिति बनाकर 15 दिनों के भीतर रिपोर्ट माँगा है। कभी उनके विरोधी रहे कुलपति को जाँच समिति का अध्यक्ष बनाया है, तो उनके ही मित्र को सदस्य। समिति में इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ गिरीश चंदेल अध्यक्ष, सुंदरलाल शर्मा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ बंशगोपाल सिंह और कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ बलदेव भाई शर्मा सदस्य होंगे। जाँच समिति में जिन कुलपतियों को शामिल किया गया है उनमे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के वीसी को छोड़ दें तो बाकी भी इसी तरह के आरोपों से घिरे हुए है, कुछ अभी भी जाँच का सामना कर रहे है। ऐसे में जाँच रिपोर्ट दिलचस्प होगा।
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