राहुल गोस्वामी@स्वतंत्र बोल
प्रदेश के विश्वविद्यालयो में लंबे समय से जमे कुलसचिवों और कुलपति के बीच चल रही खींचतान से विश्वविद्यालयो की व्यवस्था बिगड़ रही है। किसी भी विश्वविद्यालय में शीर्ष स्तर पर कुलपति और कुलसचिव ही प्रमुख होते है, जिनके दम पर पूरा विश्वविद्यालय चलता है। ऐसे में दोनों के बीच सामंजस्य का अभाव हो तो संस्थान सही दिशा में बढ़ने की बजाये विवादों का केंद्र बन जाती है। प्रदेश के राजकीय विश्वविद्यालयो के हालत कुछ ज्यादा अच्छी नहीं है, यहाँ अफसरों के एक ही जगह पर लंबे समय से जमे होने की वजह से विवाद की स्थिति निर्मित हो रही है। राज्य शासन के नियमानुसार किसी भी अधिकारी/ कर्मचारी को एक स्थान पर तीन साल से ज्यादा वर्षो तक पोस्टिंग नहीं जानी पर विश्वविद्यालयो की स्थिति इससे इतर है। यहाँ तो साढ़े चार और सात सालो से कुलसचिव जमे हुए है, जिन्हे पोस्टिंग कर सरकार भूल गई है। एक ही जगह पर लंबे समय से जमे होने से संस्था प्रमुखों के बीच तालमेल बिगड़ रहा है।
प्रदेश में रेगुलर कैडर के तीन ही कुलसचिव है, श्रीमती इंदु अनंत, विनोद एक्का और भूपेंद्र कुलदीप.. जो विभिन्न विश्वविद्यालयो में जमे हुए है। लंबे समय से एक ही जगह में पदस्थ रहने से कुलपति और कुलसचिवों के बीच सामंजस्य का अभाव है, जिसका असर विश्वविद्यालय की कार्य पर पड़ रहा है। सरगुजा के संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय में कुलसचिव विनोद एक्का विगत सात सालो से पदस्थ है। एक्का के कुलपति अशोक सिंह के साथ मतभेद सार्वजनिक है। कई मौको पर कुलसचिव ने कुलपति पर सार्वजनिक रूप से अपमानित करने का आरोप लगाया तो कुलपति ने भी एक्का पर कई आरोप लगा चुके है।
असिस्टेंट प्रोफेसरों की मौज: वर्षो से प्रतिनियुक्ति पर जमे, सचिव के आदेशों का नहीं हो रहा पालन
वही हाल बिलासपुर के सुंदरलाल शर्मा विश्वविद्याल के कुलसचिव का है, यहाँ कुलसचिव इंदु अनंत साढ़े चार वर्षो से पदस्थ है और कुलपति डॉ बंशगोपाल सिंह बीच का विवाद किसी से छिपा नहीं है। बीते दिनों भर्ती प्रक्रिया में कुलपति ने कुलसचिव को पूरी तरह बाहर कर दिया था। श्रीमती अनंत सबसे सीनियर कुलसचिव बताई जाती है। उन्हें हटाने विश्वविद्यालय प्रबंधन ने कई दफे पत्राचार किया पर असफल रहे। कुलपति बंशगोपाल सिंह किसी असिस्टेंट प्रोफ़ेसर को कुलसचिव का प्रभार देना चाहते है। उधर दुर्ग विश्वविद्यालय में भी कुलपति अरुणा पल्टा और कुलसचिव भूपेंद्र कुलदीप में बीच चल सब कुछ ठीक नहीं है, यहाँ दोनों के बीच टकराव के हालत है। पूर्व में भूपेंद्र कुलदीप विश्वविद्यालय में डिप्टी रजिस्ट्रार पदस्थ रहे जिसे कुलपति की शिकायत के बाद हटाया गया था, बाद में प्रमोशन उपरांत कुलदीप को दोबारा दुर्ग विश्वविद्यालय में पदस्थापना दे दी गई, तब से विवाद और गहरा गया है। बताते है कि कुलपति ने कुलसचिव से काम लेने की बजाये एक असिस्टेंट प्रोफ़ेसर को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी है।
उधर राजधानी के पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय विगत साल भर से प्रभारी कुलसचिव के भरोसे चल रहा है। विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलसचिव(उपकुलसचिव) शैलेन्द्र पटेल पर गंभीर आरोपों के बाद भी नहीं हटाया गया। यहाँ किसी आईएएस को पदस्थ करने की चर्चा थी पर पर वह चर्चा से आगे नहीं बढ़ी। सुनते है कि कुलपति डॉ. शुक्ला का विवादित प्रभारी कुलसचिव के साथ बेहतर तालमेल है। बस्तर के शहिद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय में भी कुलपति सिंह और कुलसचिव वाजपेयी के बीच खटपट की खबरे है। विश्वविद्यालयो के शीर्ष प्रबंधन के बीच जारी शीत युद्ध का समाधान उच्च शिक्षा विभाग के जिम्मेदारों को निकलना चाहिए, ताकि विश्वविद्यालय विवादों की बजाये शोध का केंद्र बने।
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