स्वतंत्र बोल
रायपुर 16 सितंबर 2024. सरकार का सबसे महत्वपूर्ण विभागों में से एक है महिला बाल विकास विभाग, जहा महिलाओ और बच्चो के सुपोषण और विकास के लिए दर्जनों योजनाए राज्य और केंद्र सरकार द्वारा चलाई जाती है.. उस विभाग में वर्षो से अधिकारी अंगद की तरह एक ही कुर्सी में जमे हुए है। लंबे समय तक अधिकारियो के एक ही कुर्सी में जमे रहने का असर सरकार की जनहितकारी योजनाओ पर हो रहा है.. प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद भी अधिकारियो का तबादला नहीं हुआ है।
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समय, सत्ता और सरकार बदलती रही, पर नहीं बदली तो महिला बाल विभाग के रसूखदार अधिकारियो की कुर्सी.. विभाग के संचालनालय इंद्रावती भवन में अधिकारियो ने अघोषित तौर पर कब्ज़ा कर रखा है…कुछेक अधिकारी ऐसे है जो छत्तीसगढ़ बनने के बाद से मुख्यालय में ही जमे हुए है ना तो कभी उनका तबादला हुआ .. ना ही प्रभार बदला गया। इस दौरान कई मंत्री, विभागीय सचिव और संचालक बदल गए पर रसूखदार अधिकारियो की कुर्सी नहीं बदली। शासन ने लंबे समय से एक ही कुर्सी में जमे अधिकारियो और कर्मचारियों को हटाने का आदेश समय समय पर जारी होता रहा पर उसका पालन विभाग में कभी नहीं हुआ। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद सत्ता और बीजेपी संगठन द्वारा विभाग में लम्बेसमय से जमे कर्मियों को हटाने का फरमान जारी हुआ था ,, पर नौ महीने बाद भी उसका असर नहीं हुआ है.. और आज भी पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में महत्वपूर्ण विभागों का जिम्मा संभालने वाले अभी भी कुर्सी में जमे हुए है।
20 सालो से मुख्यालय में जमे..
सुशासन की सरकार में दावे किये गए थे कि किसी भी भ्रष्ट अधिकारी को छोड़ा नहीं जाएगा और तुरंत कार्यवाही होगी.. फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा है। मुख्यालय में संयुक्त संचालक दिलदार सिंह मरावी साल 2015 से, संयुक्त संचालक अर्चना राणा सेठ साल 2016 से, उपसंचालक श्रुति नेरकर साल 2005 से, उपसंचालक सुनील शर्मा साल 2000 से, उपसंचालक रामजतन कुशवाहा साल 2018 से, संयुक्त संचालक नंदलाल चौधरी साल 2018 से, सहायक संचालक प्रियंका केसर साल 2017 से, तो मुख्यालय के बाहर प्रतिक खरे साल 2018 से और एसके चौबे वर्षो से एसआरसी में जमे हुए है। सुनील शर्मा के बारे में कहा जाता है कि वे लंबे समय से आईसीडीएस और प्रियंका केसर मुख्यमंत्री सुपोषण योजना जैसा महत्वपूर्ण सेक्शन संभाल रहे है। कुपोषण और गरम भोजन पर अधिकारियो के लापरवाही और गलत जानकारी के चलते ही सौम्य स्वाभाव की मंत्री को विधानसभा में निरुत्तर होना पड़ा था। उसके बाद भी इन अधिकारियो का तबादला नहीं होना, सुशासन के दावों की पोल खोल रहा है।
