नौकरशाहों को समझाइस ईडी की कार्यवाही: छोटी शिकायते बड़ी परेशानी का सबब बनती है।

राहुल गोस्वामी
रायपुर 13 अक्टूबर 2022.  प्रदेश में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा बीते तीन दिनों जारी कार्यवाही के बाद नौकरशाह, राजनेता और कारोबारी सकते में है। आईएएस अफसर की गिरफ्तारी के बाद प्रदेश का माहौल बदल सा गया है। आम तौर पर छत्तीसगढ़ के 22 सालो के इतिहास में ऐसी कार्यवाही कभी देखने, सुनने को नहीं मिली थी। छापे पड़ते रहे अधिकारी, नगदी सोने चांदी मिलते रहे पर इस बार माहौल अलग है।
बीते दो सालो में देखे तो आयकर और ईडी ने तीन बार छापेमारी की, हर बार बड़ी संख्या में नगदी और दस्तावेजों के मिलने की चर्चा होती रही। चर्चाये छापे तक सीमित थी पर इस बार माहौल कुछ बदला सा है। ईडी जिस तरह शराब कोयला और ट्रांसपोर्ट से जुड़े कारोबारियों पर कार्यवाही कर रही उससे स्पष्ट है कि ईडी बड़ी तैयारी के साथ आई है। इस बार उसके राडार पर कारोबारियों के साथ भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और राज्य प्रशासनिक सेवा के कुछ चुनिंदा अफसर है। ईडी की इस कार्यवाही से प्रदेश में हड़कंप मचा हुआ है। इन सबके के बीच यह जानना जरुरी है कि कार्यवाही एक दिन की नहीं है, इसकी महीनो तैयारी की गई,, फिर छापेमारी की है। जिन कारोबारियों पर टीम ने छापेमारी की उन पर वर्षो से निगाह रखी जा रही थी, दस्तावेजों की जानकारी जुटाई गई फिर पुख्ता प्रमाणों के साथ कार्यवाही को अंजाम दिया गया है।
आज गिरफ्तारी के दौरान आईएएस समीर बिश्नोई कागजो से अपन चेहरा छिपाते रहे, आखिर इसकी नौबत क्यों आई? दरअसल ऊंचे और पावरफुल कुर्सी में बैठने के बाद अधिकारी भूल जाते है कि उनकी भी अपनी सीमाये है। समीर बिश्नोई, रानू साहू की पहले भी शिकायते होती रही पर स्थानीय स्तर में मामला दब जाता रहा पर ऊंचे स्तर पर पहुंची शिकायते बड़ी कार्यवाही का सबब बनी है। छोटी छोटी शिकायते कब बड़ी जाती है उन्हें ध्यान ही नहीं रहता। पॉवर के नशे में चूर अधिकारी भूल जाते है कि कागज कभी मरती नहीं है, बस रेंगती रहती है और रेंगते हुए जब एकजुट हो जाती है तब ऐसी स्थितियां निर्मित होती है। अधिकांश अफसरो को भ्रम होता है कि वे अपने रसूख और पैसे के दम पर सब मैनेज कर लेंगे पर हमेशा ऐसा हो जरुरी नहीं है। प्रदेश में ऐसे अधिकारियो की संख्या सैकड़ो है, स्वयं को राजा और फरियाद लेकर आये या सामने बैठे व्यक्ति निरीह समझना बड़ी भूल साबित होती है। ऐसे में इस तरह की कार्यवाही उनको उनकी सीमाओं का ध्यान दिलाती है। जीतनी बड़ी कुर्सी उतनी ही अधिक जिम्मेदारी होती है पर अफसर जिम्मेदारीयो की परवाह ना कर सिर्फ की चिंता करे तो इसका असर सरकार की छवि और योजनाओ पर पड़ती है। प्रदेश में ऐसे अधिकारियो की संख्या में बड़ी तेजी से इजाफा हुआ जो कंबल ओढ़कर घी पीने में जुटे है। उन्हें सरकारी की छवि और योजनाओ की चिंता नहीं है, ऐसे में यह कार्यवाही उनके लिए सबक है। नहीं तो बाद में समीर बिश्नोई की तरह मीडिया में गुस्सा निकालने के अलावा कुछ नहीं बचता।

 

समरथ को नहीं दोष गोसाई…

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