ट्रस्ट की जमीनों का खेल: ट्रस्टी बनकर करोडो की जमीन को बेचा, शिकायत हुई तो नाम जोड़ने किया आवेदन..

स्वतंत्र बोल
रायपुर 13 दिसम्बर 2024.  राजधानी में लोक न्यास ग्राम सेवा समिति के जमीनों पर बेचने पर बवाल मचा हुआ है, अजय तिवारी नामक व्यक्ति ने स्वयं को ट्रस्टी बताकर ग्राम सेवा समिति की 19 एकड़ जमीन को बेच दिया.. और जब इस मामले की शिकायत पंजीयक लोक न्यास के पास हुई तो उसने ट्रस्ट में स्वयं का नाम जोड़ने आवेदन कर दिया। मामला राजधानी में घडी चौक स्थित लोक न्यास ग्राम सेवा समिति का है, जिसकी आमासिवनी की 19 एकड़ जमीन को अजय तिवारी नामक व्यक्ति ने साल 2008 में एक बिल्डर को बेच दिया था। अब शिकायत हुई तो परते उधड़ने लगी है।

दस्तावेजों के अनुसार आमासिवनी की 19 एकड़ जमीन को नक्कीपुर इफ्रास्टचर प्राइवेट लिमिटेड के संचालक अनूप अग्रवाल को बेचा गया था, जिसके बदले में अनूप अग्रवाल ने अजय तिवारी को पक्के में 5 करोड़ अड़तीस लाख अठानवे हजार रुपये भुगतान किया था। बाद में उसी जमीन को अनूप अग्रवाल ने रामा बिल्डकान के संचालक राजेश अग्रवाल को बेच दिया, बिल्डर राजेश अग्रवाल ने उसी जमीन पर स्वर्णभूमि बनाया है।

पहले जमीं बेचा, फिर शामिल होने लगाया आवेदन-

लोक न्यास ग्राम सेवा समिति के स्व कथित अध्यक्ष अजय तिवारी ने साल 2008 में जमीनों को बेचा, फिर साल 2023 स्वयं को ट्रस्ट में शामिल करने एसडीएम और पंजीयक लोक न्यास के कार्यालय में आवेदन किया था। जिसके प्रश्न उठता है कि ट्रस्ट में शामिल नहीं होने किस अधिकारो के अंतगत अजय तिवारी ने जमीनों को बेचा? एसडीएम कार्यालय में साल 2023 में अजय तिवारी ने अपने साथ पूर्व विधायक सत्यनाराण शर्मा, विजय दानी, सुरेश शुक्ला, गोकुलदास डागा, आरके गुप्ता, डॉ कमलेश्वर अग्रवाल के नाम ट्रस्ट में शामिल करने आवेदन किया था, जिसे जून 2024 में पंजीयक लोक न्यास ने ख़ारिज कर दिया है। नक्कीपुर इंफ्रास्ट्रचर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के संचालक रहे अनूप अग्रवाल रायपुर हॉस्पिटल के संचालक डॉ कमलेश्वर अग्रवाल के भाई बताये जाते है। उधर पूर्व मंत्री और विधायक सत्यनारायण शर्मा और डॉ कमलेश्वर अग्रवाल ने आवेदन की जानकारी से इंकार किया है।

विवादों में फंस गई स्वर्णभूमि !


लोक न्यास अधिनियम 1951 अंतर्गत मंदिर ट्रस्ट जमीनों बेचने पंजीयक सार्वजानिक न्यास एवम कलेक्टर के अनुमति के बाद ही बेचा जा सकता है, पर आमासिवनी की खसरा क्रमांक 157/1, 157/2, 157/3 की जमीनों को नक्कीपुर इंफ्रास्टचर को बेचने के पूर्व कलेक्टर से अनुमति नहीं लिया गया था। उन्ही खसरो में वर्तमान में स्वर्णभूमि बनी हुई है।

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