गबन होता रहा और जाँच की औपचारिकता करते रहे ऑडिट फर्म, आरोपितों की रायपुर पुलिस को चेतावनी.. बैंक घोटाला पर स्वतंत्र बोल की रिपोर्ट

स्वतंत्र बोल
रायपुर 15 जून 2024.  जिला सहकारी बैंक रायपुर के सरकारी खजाने में डाका डालने वाले कर्मियों पर बैंक प्रबंधन और सहकारिता विभाग के जिम्मेदार मेहरबान है। तीन आरोपितों पर अपराध दर्ज कराने के बाद बैंक प्रबंधन ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है और मामला ठन्डे बस्ते में डाल दिया है। बैंक को करोडो का चूना लगाने वाले कर्मियों पर कार्यवाही के नाम पर विभागीय जाँच और अब “लेटर- लेटर” खेल जा रहा है। यही कारण है कि जिला सहकारी बैंक के विभिन्न शाखाओ में करोडो का गबन बैंककर्मीयो द्वारा करने की खबरे सामने आती है।
बैंक में हुए करोडो के गबन पर बैंक प्रबंधन ने दोषी कर्मियों पर विभागीय जाँच संस्थित किया है। वही दो कर्मचारी पंकज सराफ और घनश्याम देवांगन अपराध दर्ज करने पुलिस को लिखा है।

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सीईओ या जेआर टॉवरी.. जिम्मेदार कौन ?

जिला सहकारी बैंक रायपुर के विभिन्न शाखाओ में बैंक कर्मियों ने दस करोड़ रुपये से अधिक का गबन किया है। राजधानी के सीओडी शाखा, गंज शाखा, खोरपा शाखा और वङ्गन शाखा में करोडो रुपये का गबन हुआ पर वङ्गन शाखा अतिरिक्त किसी भी जिम्मेदार कर्मचारी पर अब तक कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं हुई है। बीते दिनों गबन के आरोपित कर्मियों पर समुचित कार्यवाही करने सहकारिता विभाग के संयुक्त पंजीयक देवीप्रसाद टॉवरी ने सीईओ अपेक्षा व्यास को पत्र लिखा था, जिसमे बैंक की सीईओ श्रीमती अपेक्षा व्यास ने दस दिनों बाद जवाब दिया कि

“सहकारी सोसायटी अधिनियम 1960 की धारा 58 सहपठित नियम 50 के उपबंधों का पालन करते हुए बैंक द्वारा कार्यवाही की जा रही है।” और पत्र संयुक्त पंजीयक को भेज दिया।” उक्त पत्र 4 जून को जेआर को भेजा गया था, जिसके दस दिनों बाद भी कोई कार्यवाही नजर नहीं आती है। सीईओ द्वारा भेजे गए गए जवाब में भी खेल हो गया। सीईओ ने संयुक्त पंजीयक को भेजे पत्र में मोहनलाल साहू, पंकज सराफ और उसकी माता प्रमिला सराफ, घनश्याम देवांगन और उसकी पत्नी रजनी देवांगन और रामेश्वर बारले का नाम शामिल नहीं है, जबकि इन सभी के खातों में पैसा ट्रांसफर हुआ था। अंदरूनी सूत्रों के अनुसार जवाब बनाने का जिम्मा सीईओ ने जिस व्यक्ति को सौपा था उसने खेल कर दिया और “अपनों” का नाम जोड़ा ही नहीं।

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ब्लैकलिस्टेड हो ऑडिट फर्म-


बैंक में छह सालो से घोटाला चलता रहा और ऑडिट फर्म उस गड़बड़ी को पकड़ नहीं सके। बैंक द्वारा ऑडिट फर्मो के सालाना लाखो रुपये बतौर फीस भुगतान किया जाता है पर अधिकांश ऑडिट फर्म गड़बड़ियों को पकड़ने में नाकाम रहे है जिसके बाद इन फर्मो को ब्लैकलिस्टेड करने की मांग हो रही है। राजधानी के सीओडी शाखा में साल “2016-17 में मेसर्स आनंद जीमनानी एंड एस्सोसिएट्स, 2017-18 में जी.ए. एंड कंपनी, 2018-19 में मेसर्स एस.एस. अग्रवाल एन्ड कंपनी, वर्ष 2020-21 में दोबारा एस.एस. अग्रवाल एन्ड कंपनी बिलासपुर, वर्ष 2021-22 में मेसर्स सुनील केसवानी एंड कंपनी और साल 2022-23 में गोयल एंड गोलछा फर्म” को ऑडिट का जिम्मा बैंक द्वारा सौपा गया था। इन फर्मो ने अपने नाम के अनुरुओ काम नहीं किया और घोटाला बदस्तूर जारी रहा।

पुलिस की जाँच कछुवे की चाल-


मारपीट, ह्त्या और विवादास्पद जमीनी मामलो में फुर्ती दिखाने वाली राजधानी पुलिस के हाथ आर्थिक मामले में नौ महीने बाद भी खाली है। राजस्थान और उत्तर प्रदेश से खूंखार और अंतरास्ट्रीय बदमाशों को पकड़ लाने वाली पुलिस अब तक बैंक घोटाले के आरोपितों को नहीं पकड़ पाई है। दस दिनों पहले सीओडी शाखा के प्रबंधक द्वारा घनश्याम देवांगन और विजय वर्मा पर अपराध दर्ज करने दिए आवेदन पर अब तक पुलिस अपराध दर्ज नहीं की है। मौदहापारा पुलिस के अनुसार मामला बेहद गंभीर है, ऐसे में टीआई खुद जाँच कर रहे है। आरोपित अपनी गिरफ्तारी को लेकर पुलिस को चेतावनी जरूर दे रहे है।

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