राहुल गोस्वामी
चौपाल चर्चा 15 दिसंबर 2024.
सरकारी जमीन का खेल-
अमलीडीह के सरकारी जमीन आबंटन पर उपजे बवाल से और कॉंग्रेसियो के लगातार हमलो से राजस्व मंत्री घिर गए है। दस्तावेजों के सार्वजानिक होने के बाद राजस्व विभाग के दोहरी व्यवस्था की पोल खुली है, एक जिसमे सामान्य आम लोग किसान और मजदुर आते है। जो अपनी जमीन के पेपर में मात्रात्मक त्रुटि को सुधरवाने वर्षो राजस्व महकमे के चक्कर लगाता है दूसरा वर्ग जिसके लिए राजस्व सचिव से लेकर मंत्री तक आनन फानन में उपलब्ध हो जाते है। आचार सहिंता में जब सफाई, पेजयल और बिजली को छोड़ दें तो अधिकांश सरकारी काम बंद रहता है, तब अधिकारियो ने बिल्डर लाभान्वित करने काम किया गया। इतनी ही तेजी आम जनहित के विषयो पर अधिकारी दिखाते तो प्रशासन की भद नहीं पीटती।
मंत्री को फायदा या नुकसान ?
सरकारी जमीन के बंदरबांट का खेल सार्वजनिक होने के बाद सरकार और उनसे जुड़े लोग नाराज बताये जाते है। जिस तरह सरकारी सरंक्षण में सरकारी जमीन का खेल हुआ सभी हैरान है.. आरोपों के केंद्र में मंत्री टंकराम वर्मा पर है। जिसके बाद सरकार से जुड़े लोगो ने निरस्त कर तत्काल इसका निराकरण करने कहा है,, क्योकि इससे फायदा कितने को हुआ नहीं पता, पर असर सरकार की छवि पर पड़ रहा है। उधर यह मामला मंत्री के फायदेमंद हो ऐसा अब नहीं दिख रहा है, पहले भी मंत्री जी ट्रांसफर पोस्टिंग को लेकर विपक्ष के निशाने पर रह चुके है।
आरएसएस नेता का सरंक्षण –
एक विश्वविद्यालय के उपकुलसचिव पर दर्जन भर से अधिक गंभीर आरोप है. कई दौर की जाँच में इसकी पुष्टि भी हुई । नियुक्ति, शैक्षणिक योग्यता से लेकर खरीदी और प्र्शन पत्र छपाई तक में करोडो के खेल को लेकर ढेरो शिकायते रही। कांग्रेस सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री का सरंक्षण मिला था, ऐसे में तमाम जाँच के बाद भी सस्पेंशन तक नहीं हुआ। सरकार बदली तो एबीवीपी ने भ्रष्ट अधिकारी चेतावनी दी और विश्वविद्यालय में धरना प्रदर्शन किया। छात्र इकाई समझाने खुद कैबिनेट मंत्री को जाना पड़ा और सप्ताह भर में कार्यवाही के आश्वासन में धरना समाप्त हुआ। बताते है कि खेल उसके बाद शुरू हुआ, खटराल अधिकारी ने हाथ पैर मारा तो बीजेपी सरकार में आरएसएस के प्रदेश संगठन में दमखम रखने वाले नेता सरंक्षक बन गए। उसके बाद अब एबीवीपी के कार्यकर्ता चाहकर भी कुछ नहीं बोल पा रहे, बताते है कि विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर जिसे भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों के आरोप संत गुरु गहिरा विश्वविद्यालय से हटाया गया था, ने आरएसएस पदाधिकारी तक पहुंचने पुल बनाया, और फिर भाई साब का सरंक्षण मिल रहा है। अब संघ के उच्च पदों पर बैठे जिम्मेदार अधिकारी से ऐसी उम्मीद किसी को नहीं थी। पेशे से प्रोफ़ेसर भाई साब को विश्वविद्यालय में होने वाले भर्तियो का गणित समझाया गया है।
विवाद अपनी जगह- किस्मत अपनी जगह-
आईपीएस धर्मेद्र सिंह छवाई भाग्यशाली है, मूलतः मध्यप्रदेश के निवासी श्री छवाई के आईपीएस अवार्ड को लेकर कांग्रेस सरकार में जमकर हंगामा हुआ था उनके सहकर्मियों ने मोर्चा खोल रखा था, उसके बाद भी आईपीएस अवार्ड होने में सफल रहे। कांग्रेस सरकार में बेमेतरा और महासमुंद जिलों में कप्तानी की, बीजेपी सरकार में आई तो कप्तानी से हटाकर मुख्यालय अटैच कर दिया पर कुछ महीनो में कवर्धा एसपी बनकर जिला लौट गए। कवर्धा मध्यप्रदेश से और महासमुंद उड़ीसा से लगा सरहदी जिला है, और दोनों ही जगहों से प्रतिबंधित चीजों की अवाक् ज्यादा होती है।
मंत्री और आरएन सिंह-
सहकारिता मंत्री के विश्वश्त रहे आरएन सिंह को लेकर खबरे है। आरएन सिंह पिछली बीजेपी सरकार में केदार कश्यप के मंत्री रहते उनके सबसे विश्वश्त रहे, मंत्री के बाद सिंह ही ऐसे थे जिनकी बात कोई नहीं काट सकता था। अब इस बार सरकार में मंत्री बनने के बाद आरएन सिंह गायब है, उनकी जगह किसी और ली है.. पर क्या वास्तविक में ऐसा ही है ? ये पूरा सच नहीं है।
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